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24 जनवरी {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निरुपमा दत्त
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<poem>
सुबह की चाय के साथ
कल पाठकों का
नया दिन शुरू करने के लिए
सामग्री परोसनी है पठनीय
लेकिन आज कुछ घट नहीं रहा दुनिया में
शोक समाचार पहले से तैयार है
लेकिन पिछले तीन महीने से बीमार
वयोवृद्ध नेता
मशीनों के सहारे
आज फिर मरते-मरते बचे
थाने से
न हत्या की कोई ख़बर है
और न ही आत्महत्या की
किसी हरिजन लड़की से
बलात्कार भी नहीं हुआ
झोपड़ियों में कहीं आग भी नहीं लगी
दिन बीत रहा है
कहीं कोई हड़ताल नहीं
कहीं जाँच-पड़ताल नहीं
आज उदास है अख़बार ।
'''पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद : फूलचन्द मानव'''
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