797 bytes added,
31 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
महान
लोग हैं
होने की इच्छाएं हैं
मुझ में भी
तुम में भी
पर होना नहीं चाहिए
कुछ है भी नहीं
महानता जैसा
लोगों को
तरह-तरह से
छोटा करते जाने वाले
समाज में
कुंठजनित
टोपियां हैं यह
क्षण भर को
कैसी जंचती हैं
उदासियों के साम्राज्य में...।
</poem>