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दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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24 फ़रवरी
सदियाँ लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में।
उनसे नज़रें टकराईं तो जो
नुकसान
नुक़्सान
हुआ,
आँसू भरता रहता हूँ उसके हरजाने में।
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