गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
2 bytes added
,
24 फ़रवरी
<poem>
जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
झील
,
सागर
,
ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।
ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits