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वो भी साबुत बचा नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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,
24 फ़रवरी
रब अगर लापता नहीं होता।
झूठ ने इस
कदर
क़दर
पिला दी मय,
पाँव पर सच खड़ा नहीं होता।
पेड़ यूँ ही हरा नहीं होता।
लूट
लेते हैं
लेता है
फूल को
काँटे
काँटा
,
आज दुनिया में क्या नहीं होता।
</poem>
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