Changes

यही इन्तेहाँ थी मुहब्बत की जानम,
तुम्हारे मैं तेरे लिए ही तुम्हीं तुझी को दगा दूँ।
बिखेरी है छत पर यही सोच बालू,
मैं सहरा का इन बादलों मेघावली को पता दूँ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits