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<poem>
बिन तुम्हारे होश में रहना सज़ा है।
बेखुदी बेख़ुदी भी बिन तुम्हारे बेमज़ा है।
रब से पहले नाम तेरा -ए-जानाँ ले रहा हूँ,है, ख़ुदा से आज भी मेरी नज़ा है।
तीन लोकों का तेरे बिन क्या करूँगास्वर्ग,भू, पाताल का मैंतू नहीं तो बिन तुम्हारे जो भी है वो बेवज़ा है।
आ रहा हूँ अब तुम्हारे साथ जीने,
लोग कहते सब को लगता आ रही मेरी कज़ा है।
माँगता मैं ताउमर तुझको उम्र भर तुमको रहूँगा,
दे, न दे, मुझको ख़ुदा उसकी रज़ा है।
</poem>
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