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छोटे -छोटे घर जब हमसे लेता है बाज़ार।
बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाज़ार ।
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाज़ार ।
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब हैशुद्ध मुनाफ़े से,
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाज़ार ।
ख़ून पसीने से अर्जित पैसों के बदले में,
सुविधाओं का जहर ज़हर हमें दे देता है बाज़ार।
</poem>
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