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मेरा माथा उबलती धूप छू के लौट जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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26 फ़रवरी
सवेरे रोज़ सूरज को मेरी माँ जल चढ़ाती है।
कहीं भी मैं रहा पर आजतक भूखा नहीं सोया,
मेरी माँ एक रोटी गाय की हर दिन पकाती है।
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