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<poem>
सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ।
मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाकी बाक़ी हैं सीढ़ियाँ।
तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ,
झुक लो जरा ज़रा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ।
चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे,
मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की,
लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ।
रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के,
हर पग तल पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ।
</poem>
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