Changes

धूप धरा पर / नामवर सिंह

871 bytes added, 27 फ़रवरी
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नामवर सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धमनी सी धड़कती नदी उन्मादिनी
नीलम जल से उठती भाप सुहावनी
जौ की बालों के उद्भासित टूँड़ पर
पार उषा की बिन्दी उगी सुहासिनी

शिशु की आँखों से नीलोज्वल व्योम में
सरिता के उजले नीले दृग व्योम में

टूट रही धुएँ की पतली लीक-सी
धूप धरा पर जल-सी बढ़ती आ रही
आँखों में जाने कैसी है भीख-सी ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits