Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNavgee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राम सेंगर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
लोग सुन रहे हैं
सुर्र-सुर्र फ़्लिटगन की
उठ-उठ कर रात-भर
हमने कितने मच्छर मारे ।

द्वार बन्द बीच का-
इधर तख़त,उधर तख़त
इस पर कवि
उस पर आलोचक ।
काहे का कनसुआ
दोनों ही मगनमना
गतिविधियाँ
दोनों की रोचक ।

खटपट अपनी,
उनकी आसंदी की चरमर,
बाधित रचनाक्षण के आस्वादों का विनिमय
बोल-भाव
क्या करें बेचारे ।
लोग सुन रहे हैं
सुर्र-सुर्र फ्लिटगन की
उठ-उठ कर रात-भर
हमने कितने मच्छर मारे ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits