724 bytes added,
10 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भिखारी
पत्थर पर बैठे हैं
पत्थर उनका नहीं है ।
भिखारी
ज़मीन पर खड़े हैं
ज़मीन उनकी नहीं है ।
भिखारियों के हाथ
फैले हुए हैं
आकाश उनका नहीं है । ...
कहने को
भिखारियों को
कुछ नहीं खोना है
केवल ज़ंजीर
हासिल करने को
सारा संसार है ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader