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15:34, 20 नवम्बर 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|संग्रह=
}}
<Poem>
खोज-खोज हारे हम
::पता नहीं
कहाँ गई अम्मा की चिट्ठी
अम्मा ने उसमें ही
ख़बर लिखी थी घर की
'टूटी है छत अगले कमरे की
सीढ़ी भी पोखर की
'हुई ब्याह-लायक है
::अब तो जानो
बड़के की बिट्टी
'बाबू जी बुढ़ा गए
याद नहीं रहता है कुछ भी
खेत कौन जोते अब
रहता बीमार चतुर्भुज भी
'गाँव के मज़ूर गए
बड़ी सड़क की ख़ातिर
::तोड़ रहे गिट्टी'।
बच्चों के लिए हुई
अम्मा की चिट्ठी इतिहास हि
किंतु हमें लगती वह
बचपन की मीठी बू-बास है
चिट्ठी की महक
::हमें याद है
जैसे हो सोंधी खेतों की मिट्टी ।
</poem>