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|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय
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<poem>
मैं तुम्हारी महफ़िलों में बस, हवा बनकर रहा
रात-भर का साथ था बस, मैं दिया बनकर रहा

जिसको केवल दर्द में तुमने पुकारा है सनम
मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में वो ख़ुदा बनकर रहा

सबने मुझ पर दाँव खेले अपनी चाहत के लिए
सच कहूँ तो ज़िन्दगी-भर मैं जुआ बनकर रहा

कुछ छुपाकर रख न पाया पास अपने मैं कभी
चेहरा मेरा मेरे दिल का आइना बनकर रहा

हर कोई मुझसे गुज़रकर चल दिया है छोड़कर
उम्र-भर मैं हर किसी का रास्ता बनकर रहा
</poem>
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