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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा
|संग्रह=
}}

<Poem>
मेरे जज़्बात मेरे नाम बिके
उनके ईमान सरेआम बिके

एक मंडि है सियासत ऎसी
जिसमें अल्लाह बिके राम बिके

पी के बहका न करो यूँ साहब
अब तो मयख़ाने के हर जाम बिके

उनकी बातों का भरोसा कैसा
जिनके मजमून सुबह-शाम बिके

कैसे इजहार करूँ उल्फ़त के
मेरे अरमान बिना दाम बिके
</poem>