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16:04, 20 नवम्बर 2008 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा
|संग्रह=
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<Poem>
मेरे जज़्बात मेरे नाम बिके
उनके ईमान सरेआम बिके
एक मंडि है सियासत ऎसी
जिसमें अल्लाह बिके राम बिके
पी के बहका न करो यूँ साहब
अब तो मयख़ाने के हर जाम बिके
उनकी बातों का भरोसा कैसा
जिनके मजमून सुबह-शाम बिके
कैसे इजहार करूँ उल्फ़त के
मेरे अरमान बिना दाम बिके
</poem>