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{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी
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<poem>
1
जब भी मैं पाती हूँ
ख़्वाबों में तुमको
फूली न समाती हूँ।
2
माथे पे आई जो
तुमने बोसे से
हर शिकन मिटाई वो।
3
मिलने को वो आया
था मालूम मुझे
होगी न हुड़क ज़ाया।
4
ये मन बेहाल हुआ
तुम बिन हर दिन अब
जैसे इक साल हुआ।
5
अपना सुख- दुख साँझा
हीर तुम्हारी मैं
तुम मेरे हो राँझा।
6
करता शुकराना दिल
तुमने समझा जो
मुझको अपने क़ाबिल।
7
दिल का ये हाल रहा
हर पल, हर लम्हा
तेरा ही ख़्याल रहा।
8
ख्वाबों में तुम आए
मैं जब सोई तो
जागी किस्मत, हाए।
9
मंदिर, दरगाहों पे
माँगा, हो न कभी
वो दूर निगाहों से।
10
हाँ सच है यह किस्सा
अब तुम हो मेरे
इस जीवन का हिस्सा।
11
तुम ही वो शख़्स रहे
मेरे इस दिल पे
हैं जिसके नक़्श रहे।
12
तुमसे ना बात हुई
दिन बेकार गया
औ काली रात हुई।
13
पहचान मुहब्बत की-
रूह हमारी है
इक- दूजे में अटकी।
14
वो पल भूले- बिसरे
कागज पे लिक्खूँ
मैं तेरे ही मिसरे।
15
मिटती हर पीर पिया
तुममें है ही कुछ
ऐसी तासीर पिया।
16
मंदिर क्यों जाना है
प्यार फ़कत पूजा
हमने यह माना है।
17
'''आएँगे आज पिया'''
यों उम्मीदों का
जलता हर रोज दिया।
18
महबूब बिना क्या है
चूड़ी, पायलिया
सिंदूर, हिना क्या है?
19
थोड़ा सुनते जाना
मेरे किस्से में
तेरा है अफ़साना।
20
कुछ और न मन में है
ख़्याल तुम्हारा ही
हर वक्त ज़हन में है।
</poem>