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|रचनाकार=धर्वेन्द्र सिंह बेदार
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<poem>
ज़मीं पर गिरा टूटकर आसमांँ से
सितारा जुदा हो गया कहकशांँ से

तेरी बेवफ़ाई नहीं रास आई
चले उठ चले हम तेरे आस्तांँ से

लगी आग दिल में हुआ राख जलकर
धुआँ उठ रहा है जिगर के मकांँ से

मुहब्बत नहीं है कोई चीज़ ऐसी
कि जब दिल ने चाहा खरीदी दुकांँ से

अकेले ही आए थे हम इस जहाँँ में
अकेले ही जाना मु'अय्यन यहाँँ से
</poem>
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