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04:49, 20 अप्रैल 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
शंख फूँका साँझ का तुमने
जलाया आरती का दीप
आँचल को उठाकर
बहुत धीमे
और धीमे
माथ से अपने लगाकर
सुगबुगाते होंठ से इतना कहा –
हे साँझ मैया…
और इतने में कहा माँ ने –
बड़का आ गया
बहन बोली : आ गए भइया ।
और तुमने
गहगहाई साँझ में
फूले हुए मन को सम्भाले
हाथ जोड़े,
फिर कहा…
हे… साँझ… मैया…
</poem>
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