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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=
}}

<Poem>
सच अप्रिय होता है

यह कोई नहीं जान पाएगा कि
मैं मरूंगा इसी के साथ

दोस्त नहीं समझ पाएंगे
कि मैं उनके हिस्से की लड़ाई
इसी हथियार से लड़ रहा हूँ

जब मैं लड़ाई के मैदान में हूँ
वे सच की झूठी लड़ाइयों में मुब्तला हैं

</poem>