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16:37, 20 नवम्बर 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=
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<Poem>
मैं दूंगा हिसाब
अपनी मूर्खता, दर्प, अहंकार और लोभ का
मेरे भीतर था कोई संदेह
जिसपे मैं करता रहा सर्वाधिक विश्वास
मैं मरना नहीं चाहता था उसके हाथ
जबकि जीना तुम्हारे साथ कितना कठिन
यह एक सीधी-सरल बात है कि
तुम नहीं चाहते मुझे
मेरे लिए यह लज्जा की बात है
जबकि तुम मेरे इतने अभिन्न
मैं नि:शब्द हूँ एक वृक्ष की तरह
इसका मतलब यह नहीं कि
मैं नहीं हो सकता तुम्हारी तरह
होना तुम्हारी तरह एक लज्जा की बात है
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