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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=
}}

<Poem>
मैंने हारने के लिए
यह लड़ाई शुरू नहीं की थी

इन अभाव के दिनों में भी
जितना खुश हुआ
उतना पहले कभी नहीं
कि इधर कर्ज़ में जीने की आदत

मैंने कई रास्ते किए पार पैदल
धीमे-धीमे इतने कि
न सुनाई दे मुझे
मेरे ही क़दमों की आहट

मधुर-मधुर बज रहा है
फ़ाक़ामस्ती का संगीत
और स्वर्ग से अलहदा नहीं है यह सुख कि

बच्चे मेरे सो रहे हैं गहरी नींद में

</poem>