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<poem>
स्त्री का रहस्य उसके बालों में है
उसकी आँखों में
या उसकी मुस्कान में
यह मेरी समस्या नहीं है
सारे मर्दवादी कवियों को मैंने कब से विदा दे रखी है
लियोनारदो !

इस मास्क ने ज़रूर मेरी मुस्कान मुझसे छीन ली है
मेरी भीड़ कहीं बेरहमी से छिपा दी गई है

बरसों पहले लोगों पर पाबन्दी नहीं थी
वे मेरे पास आ सकते थे
मुझसे बातें कर लेते थे
कुछ उनके गुप्त रहस्य मैं जान जाती थी
कुछ औरतें मेरी सहेलियाँ बन जाती थीं
एक दिन उन्हें भी मुझसे दूर कर दिया गया
एक मज़बूत रस्सी का घेरा बना दिया गया
यह लक्ष्मण - रेखा मेरे लिए नहीं थी
मेरे चाहने वालों के लिए थी

तुम्हें क्या सचमुच लगता है, लियोनारदो
कि मुझे एक आराम की ज़रूरत थी, या एक गहरे अकेलेपन की
कमबख़्तों ने मुझे भी एक ख़ूबसूरत मास्क पहना दिया है
क्या उन्हें डर है कि यह महामारी मेरी रहस्यमय मुस्कान
मुझसे छीन लेगी

नहीं, डरो नहीं
मेरे पास आओ
मुझे छुओगे, तो ख़तरे की घण्टियाँ बज जाएँगी
पर मेरे बहुत क़रीब आ जाओ

आज मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है
लूव्र के इस भयावह एकान्त में ।
</poem>
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