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अब लगाऊँ एक शहतूत का पेड़, पर तू कुछ समझ न पाए, ज़ालिम ।
मेरी जैसी लाखों गोरियाँ, ताने हुए हैं डोरियाँ, हैं उनके बाल हिण्डोले
हँस-हँस देती गातीं लोरियाँ, पर मेरे मन में लड़ें सँपोले।
'''मूल पंजाबी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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