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एक पंजाबी लोकगीत / सुरजीत पातर / अनिल जनविजय
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14:01, 13 मई 2024
अब लगाऊँ एक शहतूत का पेड़, पर तू कुछ समझ न पाए, ज़ालिम ।
मेरी जैसी लाखों गोरियाँ, ताने हुए हैं डोरियाँ, हैं उनके बाल हिण्डोले
हँस-हँस
देती
गातीं
लोरियाँ, पर
मेरे
मन में लड़ें सँपोले।
'''मूल पंजाबी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
अनिल जनविजय
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