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18:32, 13 मई 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लैंग्स्टन ह्यूज़
|अनुवादक=कात्यायनी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कहॉं है कलूटों के लिए
अलग हिस्सा
इस चकरी पर,
महाशय, क्योंकि मैं इसपर चढ़ना चाहता हूँ ?
सुदूर दक्खिन में
जहॉं का मैं हूँ
गोरे और काले लोग
अगल-बगल नहीं बैठ सकते ।
सुदूर दक्खिन में
रेलगाड़ी पर
कलूटे का अलग डब्बा होता है।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : कात्यायनी'''
</poem>