{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णुकांत पांडेय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
उल्लू गया कबूतर के घर
बोला — भाई, आओ,
रात बहुत प्यारी लगती है
मैं नाचूँ, तुम गाओ ।
कहा कबूतर ने — भाई, तुम
सुबह - सुबह आ जाना,
तुम नाचो तो कौआ देखे
मैं भी गाऊँ गाना ।
</poem>