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{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी
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1
आसार तलातुम के!
मुरझा ना जाएँ
ये फूल तबस्सुम के।
2
कैसी दुश्वार घड़ी
घर के आँगन में
ऊँची दीवार खड़ी!
3
मन को यूँ बहलाया
ग़म की धूप तले
खुशियों का है साया!
4
पलकों पे शबनम है
मन भीगा- भीगा
यादों का मौसम है!
5
रुत बदलेगी तेवर
खो न कहीं देना
मुस्कानों का जेवर!
6
जादू है जाने क्या
पल- पल बदल रहा
अब रंग जमाने का!
7
अब चन्दन- सी काया
सौरभ खो बैठी
सबको विष ही भाया।
8
बंधन है वो मन का
जैसा बंधन था
मीरा- मनमोहन का!
9
सपने सब टूट गए
पथ के साथी सब
पथ में ही छूट गए!
10
चाहत है शय प्यारी
शामिल मत करना
इसमें दुनियादारी!
11
मन के हर कोने से
यादों के मोती
चमके हैं सोने- से!
12
सुख ढलती छाया है
मत घबराना तू
ईश्वर की माया है!
13
जब संग दुआएँ हों
अँधियारे में भी
पुन- नूर शुआएँ हों!
14
मत करना जिरह कभी
लगके फिर न खुले
रिश्तों की गिरह कभी।
15
अपनापन किसको है
रिश्तों- नातों की
बेकार तवक़्क़ो है!
16
सब खेल नसीबों के
कल जो मेरा था
अब संग रकीबों के!
17
दुनिया में कौन सगा
जिसको देखो वो
देता अब सिर्फ़ दग़ा।
18
माना तेवर तीखे
मगर समय से हम
कितना कुछ हैं सीखे!
19
हम लोग शराफत के
दिन यूँ बसर करें
मारे हैं आफत के!
20
लाचार ख़ुलूस यहाँ
इसका तो निकला
हर बार जुलूस यहाँ!
21
गमले में बासी है
फूल मुहब्बत का
माहौल सियासी है!
22
रहना तुम बच- बचके
आज जमाने में
सब दुश्मन हैं सच के!
23
गालों पर जो दिखते
आँसू वो बच्चे
घर में न कभी टिकते!
24
आँखों में पलते हैं
सपने हिम्मत के
सब खतरे टलते हैं।
25
कैसी है यह बस्ती
आज बचा पाना
मुश्किल अपनी हस्ती!
26
विधिना का लेखा है
कब क्या हो जाए
यह किसने देखा है!
27
रिश्तों का है मेला
है व्यवहार मगर
सबका ही सौतेला!
28
दिल तो सब ले लेंगे
समझ खिलौना पर
सब इससे खेलेंगे!
29
राहों पर बढ़ते हैं
जो भी चाहत की
सूली पर चढ़ते हैं!
30
सन्नाटे गहरे हैं
किससे हाल कहें
सब अंधे- बहरे हैं!

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