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[[Category:ग़ज़ल]]
ना दिल से आह ना लब से सदा निकलती है<br>
मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है<br><br>
सितम तो ये है अहदे सितम के जाते ही<br>
तमाम खल्क मेरी हमनवां निकलती है<br><br>
विसाले बहर की हसरत में ज़ूए -कम कममायः-मायः<br>
कभी कभी किसी सहरा में जा निकलती है<br><br>
मैं क्या करूं मेरे कातिल ना चाहने पर भी<br>
वो ज़िन्दगी हो कि दुनिया "फ़राज़" क्या कीजे<br>
कि जिससे इश्क करो बेवफ़ा निकलती है<br><br>
 
'''खल्क''' - दुनिया, '''हमनवां''' - सहमत, '''विसाले-बहर''' - समन्दर से मिलने कि चाहत
'''जूए-कम-मायः''' - कम पानी की नदी,
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