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यह कैसी चांदनी चाँदनी अम के मलिन तमिर की इस गगन में,कूक रही क्यों नियति व्यंग व्यंग्य से इस गोधूलि-लगन में?
मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे श्रृंगार शृंगार?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!