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15:10, 27 जुलाई 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेश अरोड़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
रात के दो बजे है
और मेरे कमरे के बाहर
अभी भी धूप चमक रही है
क्योंकि अंदर बैठा मैं
कविता लिख रहा हूँ
धूप बाहर है या अंदर
मैं नहीँ जानता
लेकिन जानता हूँ
कविता , धूप और तुम
मेरी ज़िन्दगी हो
जब कभी भी छाँव हुई है
या शब्दों ने मुंह मोड़ा है
या मुझे अनदेखा कर तुम
किसी गैर के साथ नहाई हो
हर बार मुझे एक जैसा लगा है
लेकिन आज रात भी
धूप मेरे दरवाज़े पर पड़ रही है
और अंदर बैठा मैं
कविता लिख रहा हूँ
तुम ज़रूर
मेरा ख़्वाब देख रही ।
</poem>