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18:22, 14 अगस्त 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
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<poem>
हिंदी, मेरी प्यारी हिंदी!
तुम राष्ट्र ललाट की उज्ज्वल मणि
तुम असंख्य कंठ की मधुर ध्वनि
हो परंपरा की सतत वाहिनी
बनी भारत सेतु की भुजा दाहिनी
हिंदी, मेरी प्यारी हिंदी!
साहित्य सरोवर की अविरल धार
तुम में लिपटा अद्वितीय प्यार
अभिव्यक्ति तेरी मन को मोहे
तुझमें ही बसा भारत का सार!
हिंदी, मेरी प्यारी हिन्दी !
सुंदर शब्दों का अंबार है तुम में
हर शब्द में छलके प्यार है तुम में
उत्तर से दक्षिण बंधे हुए जन
अपनेपन के जुड़े तार है तुम में!
हिंदी, मेरी प्यारी हिंदी!
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