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18:23, 14 अगस्त 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
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कोई बात सकता है क्या...
क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?
उम्र सैंतालिस की हो चुकी
लेकिन धमनियों में बढ़ रही है रक्त गति
रोज-रोज इनकी बेहयाई के किस्से
और सारा का सारा दर्द हमारे ही हिस्से
लुट जाता है कितनों का जीवन
खून के आँसू रो जाता है मन
अब सारा धीरज खो चुकी हूँ मैं
अपने कितने जवानों को खो कर रो चुकी हूँ मैं
इतने वीर जवानों को खोकर भी
क्या अब भी चैन से सो सकती हूँ मैं!
क्या मैं फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?
हर एक बलिदान का बदला लूँगी
एक भी जान को व्यर्थ नहीं जाने दूँगी
क्यों हमारे बच्चे अनाथ बनकर घूमें
क्यों हर बार कोई बच्चा अपने
खून से लथ-पथ पिता का माथा चूमे
इंसान के जान की क़ीमत
देश की राजनीति से ऊपर है
हर विधवा, हर बच्चे के आँसू,
दो देशों के बीच अनखिंची सीमा रेखाओं से बढ़कर हैं
इस तरह ज़ख्मों को अपने कब तक ढो सकती हूँ मैं!
क्या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?
एक क़दम भी आगे बढ़ाने से पहले
सौ बार उन्हें सोचना होगा,
जान के बदले उनका जहान लेकर
उनको रोकना ही होगा,
आज उम्र की सीमाएँ हटाएँ
हमें अनुमति दें,
हम भी अपने जवानों के साथ हाथ बटाएँ
बच्चा-बच्चा तैयार है, बड़े बूढ़ों का अंबार है
हर भारतीय के सिर पर आज, एक जुनून सवार है
टीसते अपने हृदय को अब और नहीं खो सकती हूँ मैं!
क्या मैं फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?
देश से बढ़कर कुछ भी नहीं
अब धीरज की पोटली संभालकर
हमने अलग रख दी
जज़्बातों में तूफ़ान भर आया है
हर चमड़ी आज वर्दी में उतर आया है
बेवर्दी ही वर्दी में हम राष्ट्र सेवा को उतरे हैं
गिनते जाना हमने कितनों के
कैसे सब पर कतरे हैं
बस न उठाएँ कभी सर अपना, जो भी मंडराते ख़तरे हैं
लक्ष्मी बाई की वंशज होकर, चुपचाप नहीं रो सकती हूँ मैं!
या फ़ौज में भर्ती हो सकती हूँ मैं ?
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