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|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
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<poem>
अपने आँखों के सपनों को रास्ता दिखाओ!
खुली अभी कॉपल है
जीवन पल दो पल है
मुरझाना नियति है
खिलना एक पहल है
खिलने के पहले ही ऐसे न कुम्हलाओ,
अपने आँखों के सपनों को रास्ता दिखाओ!

बोलते जो सोचोगी
हर अवसर खो दोगी
विनीता बन आँखों से
कबतक तुम पूछोगी
हाथ की लकीरों को तुम स्वयं ही बनाओ,
अपने आँखों के सपनों को रास्ता दिखाओ!

शरीर कमजोर है
पर दिमाग़ में वह ज़ोर है
लड़कियों के विजय की
हर तरफ़ ही शोर है
हो प्रतियोगी स्वयं की, स्वयं पर विजय पाओ,
अपने आँखों के सपनों को रास्ता दिखाओ !
</poem>
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