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{{KKRachna
|रचनाकार=अरुणिमा अरुण कमल
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<poem>
तुम छोटा-सा आसमान दो,
पंख हम स्वयं ही बुन लेंगे;
मन को थोड़ा इत्मीनान दो,
अवसर हम स्वयं ही चुन लेंगे।

मन की इच्छाएँ, फुदक कर बाहर आएँ,
मन की कर्मठता, हाथों में उभर आए;
मंज़िल के सोपान, स्वप्नों तक न सीमित हों
हमारे कौशल भी सामने नज़र आएँ;

पिता की आशाओं से आगे बढ़कर,
माँ के हाथों हम भी मीठा-सा सगुन लेंगे!
मन को थोड़ा इत्मीनान दो,
अवसर हम स्वयं ही चुन लेंगे!

साड़ियों के पल्लू में उलझाओ नहीं,
खुल कर थोड़ा तो लहराने दो हमें;
सेफ़्टी पिनों में कसकर बाँधों नहीं
नए ज़माने को आज़माने दो हमें;

बेटेवालों की ख्वाहिशें थोड़ी तो होंगी कम,
धिया पिता की शीतलता में थोड़ा वे जल-भुन लेंगे!
मन को थोड़ा इत्मीनान दो,
अवसर हम स्वयं ही चुल लेंगे!
</poem>
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