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<poem>
यायावर मेघों ने
डाल कर पड़ाव
प्रकट किये धरती से
प्रेम भरे भाव

खेलती शतरंज दिखी
धूप और छाँव
थिरक उठे ताल-छंद,
बूँदों के पाँव
ऊसर को सौंधी के
मिले कई पत्र
गूँज उठे 'मेघगीत'
आज यत्र-तत्र

बरसाती नदियों में
उतर रही नाव

धान धन्य-धन्य हुआ,
मचल पड़ी दूब
अधरों की प्यास मिटी,
दूर हुई ऊब
परती ने तोड़ दिया
ग्रीष्म से करार
शीतलता लिए
आ गई नयी बयार

दूर हुए धरती-
आकाश के दुराव
</poem>
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