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<poem>
“राघव तुमने लेख किया है
क्यों न आज तैयार
आज भरी कक्षा में तुमको
ख़ूब पड़ेगी मार

तुम्हें पता है सत्तर प्रतिशत
कृषकों का यह देश
धरती के भगवान यहाँ पर
हरते सबका क्लेश

मृदा यहाँ पर सोने जैसी
देती पैदावार

तुम्हें पता है कृषि में हर दिन
होने लगा विकास
खाद, उर्वरक, नई व्यवस्था
आज हमारे पास

नित्य नये उपकरणों को अब
बाँट रही सरकार”

“मास्टर साहब मेरी अम्मा
घर-घर की मज़दूर
मुझे पढ़ाना ख़ूब चाहती
लेकिन है मजबूर

उसके सपनों को करना है
मुझे आज साकार

नहीं लिखूँगा मैं कृषकों को
धरती का भगवान
चाहे जितना मारें,
चाहे जो भी हो नुक़सान

कृषि प्रधान यह देश नहीं है
मेरा यही विचार

माँ कहती है मेरे बाबा
भी थे एक किसान
जिनकी इस खेती ने ले ली
इक सूखे में जान

बोलें कृषि पर कैसे कर दूँ
ग़लत लेख तैयार”
</poem>
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