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मज़दूर औरतें / राहुल शिवाय

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सपनों की दुनिया से
रहकर दूर औरतें
कितना कुछ सहती हैं,
ये बेनूर औरतें

जिनके करतल पर
अंकित है विश्व सृजन का
खोज रहीं वे हर दिन
मझधारों में तिनका

फिर भी जीवन
भर रहतीं मज़बूर औरतें

बच्चे का मुख
सीने पर अंगिया-सा रखना
रोज़ लकड़बग्घे से लड़ना
कभी न झुकना

पाती हैं क्या
हर दिन दुख से चूर औरतें ?

धारदार कटिया से
घास काटने वाली
मीलों-मील दूरियाँ रोज़
पाटने वाली

दुनिया नयी
रचेंगी ये मज़दूर औरतें।
</poem>
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