कभी स्नेह-कभी दुत्कार
दिवस के उस पार
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ब्रज अनुवाद:
बा पार/ रश्मि विभा त्रिपाठी
दिवस के बा पार
जीवन कौ विस्तार
अथति संझा कौ रैनि सौं अभिसार
दिवस के बा पार
सुरमई अँचरा बदरा कौ गहैं
अँजोरिया रूपसी की खनकति
चुरियनि की रेख की झाँई परति
दिवस के बा पार
चमकत नरम अधरनि की मुसकनियाँ
सैंदुर की रेख गमकति मँगिया कौ चेटक
एकु नई पहचान, मेहँदी की अरंग
दिवस के बा पार
काऊ सन चलिबे
काऊ कौ नाँउ लै टेरिबे
काऊ सन जीवन काटिबे की अभिलाख
दिवस के बा पार
मखमल के गमकत बसननि की
झलमल चुनरिया में लागे सितारनि नाँई
गमकत साउन की पुरवाई नाँई
एकु सपुने कौं अपुनौ बनाइबे की जी आई
दिवस के बा पार
जासौं कबहूँ कोऊ नातौ न हुतो
परसपर अनचीन्हे
ताहि अपनाइबे की रँगी भई चाह
दिवस के बा पार
मुसकनियाँ पीर भरी
संवेदनहीन अरु अटक परी
नैननि कौ छन छन मेह
कबहूँ धिरयौ कबहूँ सनेह
दिवस के बा पार
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