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'''तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ।'''
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ब्रज अनुवाद:मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै/ रश्मि विभा त्रिपाठी बरखा के पानी मैंकागद की नैया नाँईनेह तैं पैराइबौ नेह तोरौबचन अहै मोरौपै बदिबौ जई अहैतोइ मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै कागद जा पैतोरी भावई लिखी होइबाइ जहाज बनाइउड़ाइ सकति हौंनैननि मूँचि तोइहर भावई लिखिबैं ह्वैहै तोरे विरुद्ध है रईकुचालनि के पिठ्ठूगिराइबे कौ दावा करति हौंतोइ मोरे हाँथबटा गहाइबैं ह्वैहै साइकिल के टायर कौंडंडा तैं दूरि लौं चलात भएदौरिबैं अहै- चौरी सड़क पैसंग संग ओ सखाबदिबौ जई हतुएक बेरि हमहिं सिसुताई मैंबहोरि जाइबैं ह्वैहै।-0- </poem>