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12:50, 2 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गोपालप्रसाद रिमाल
|अनुवादक=सुमन पोखरेल
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<poem>
"फूल बिखरता है, खिलता है
खिलता है, बिखरता है"
लेकिन वह फूल जिसका
सीना थापने से खिला था
उस बूँद को तृप्ति देने वाला
जब जगत में अमृत बरसा था
क्या वह फूल खिला?
"क्षण आता है, जाता है
जाता है, आता है"
लेकिन वह क्षण जिसे
भाग्यचक्र ने विरह के दिन में
सात समुद्र पार की
परी की तरह लाया था
क्या वह क्षण आया?
स्वर्ग युग की तरह अंकित स्मृति में
वह क्षण कृष्ण युग की तरह नहीं लौटा
अमृत के प्याले की तरह पाया हुआ वह फूल
हलाहल की तरह बार-बार नहीं मिला!
०००
</poem>