Changes

ग़लतफ़हमी / नासिर अहमद सिकंदर

2,409 bytes added, 10:13, 23 नवम्बर 2008
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर अहमद सिकंदर |संग्रह= }} <Poem> ग़लतफ़हमी भी क अ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नासिर अहमद सिकंदर
|संग्रह=
}}

<Poem>
ग़लतफ़हमी भी क अजीब शब्द
इस मायने में
कि बचपन में पाठ की तरह न भी पढ़ा जाए इसे
ति भी जवान होते-होते यह शब्द
आ जाता मस्तिष्क में
फिर तो सारा पढ़ा-पढ़ाया
तार्किक ज्ञान चाहे धुल जाए
पर यह अतार्किक शब्द
घर कर जाए

इसका आना जितना सहज
बिन बुलाए
जाना दिमाग़ से
उतना ही कठिन

यह ज़हर से भी ज़हरीली
पर ऎसे उतरे हलक में गर्र से भीतर
जैसे पानी
कि फिर तो सौ सबूत
हज़ार कसमें
और लाख दफ़े जान देने की चेतावनी के बावजूद
यह हिले, न डुले
न हो भीतर से बाहर
इंच भर
टस से मस रत्ती भर

कभी-कभी तो इतनी पुख़्ता दिल में जगह
कि बिन सबूत सच जैसी

हत्या में शामिल तो नहीं यह
पर स्वाभिमानी या भरोसे लायक आदमी की
यही करे हमेशा
चरित्र हत्या

दम्पत्य-जीवन के घरौंदे में तो
थोड़ी-सी भी जगह पा जाए यदि वह
तो समझो बुनियाद हिले
अटूट बंधन की यक़ीनन

ग़लतफ़हमी का एक पहलू यह भी है महत्त्वपूर्ण
कि कभी किसी ज़रूरत से ज़्यादा
आत्मविश्वास की तरह पले यह

ग़लतफ़हमी का एक सच यह भी अंतिम
कि अधिकांशत: ग़लत
ग़लतफ़हमियाँ

पालने वाला तक !
</poem>