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चाह / दीपक शम्चू / सुमन पोखरेल

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<poem>
चारों तरफ झूमते रहे भँवरे।
चुपके से मेरे दिल को चूमकर
नाचती हुई भाग जाएँ तितलियाँ,
वापस आने पर, मेरे ही सिर को छूकर ठहर जाएँ ।

शिशिर ऋतु के हिमपात और तुषार
सूर्योदय की किरण से पिघलकर बह जाएँ,
भाप बनकर शबनम के बुँदें
मेरे अंग-अंग का स्पर्श करते हुए जाएँ,
आकाश मुड़कर देखे तो
मेरे ही चेहरे को देखे ।

सुगंध के साथ नाचता रहे जीवन,
हवा के मन्द झोंके के छूने पर
फूल के साथ झूमता रहे ।

चाहता हूँ
जीवन बगीचे के फूल सा बन जाए।
०००

</poem>
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