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हरा दूध / महेश उपाध्याय

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<poem>
धरती के दूध उतर आया ।

खेत-खेत हरियाली
कर पूरी रखवाली

बालों में बीज नज़र आया ।

फूटा है पोर - पोर
हरा दूध ओर - छोर

मइय्या का प्यार उभर आया ।
</poem>
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