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11:34, 6 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= बैरागी काइँला
|अनुवादक=सुमन पोखरेल
|संग्रह=
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{{KKCatNepaliRachna}}
<poem>
आज, मेरे हजूर की
दर्शनार्थ — धृष्टता करने की सोच से
ऐसे, इस तरह बनकर आया था।
आज, मेरे हजूर की
खिदमत में बहुत कुछ कहने की सोच से
ऐसे, इस तरह झूमकर आया था।
शिष्टता के लिए साधुवाद,
चाय के लिए धन्यवाद।
और क्या कहूँ ...
सब कुछ भूल गया, जो कहने की सोचकर आया था।
देखिए...
इन आँखों में शरमाते हुए जो चित्र थे,
मेरे हजूर के ही होंगे, सोचकर
दीखाने के लिए आया था।
०००
...........................................
[[चिया पिइसकेर उसको घरबाट हिँड्ने बेलामा / बैरागी काइँला|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ ।]]
</poem>