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15:28, 19 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विश्राम राठोड़
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आसमानों में नहीं ज़मीं पर भी उतर के देखो
यहाँ रहमा गुजरता है यहाँ मर के नहीं जी के देखो
हर मुस्कराहट की भी एक वजह होती है
जहर कितना भी ज़हर हो एक सज़ा ही होती है
बेपरवाह मौत ज़िन्दगी ताल्लुक़ क्या
एक बार जो पल मिला है उसे तो जी देखो
तुम मेरे दिल में उतर नहीं सकते, दिल से उतार के देखो
तुम मेरे से बात करना अच्छा नहीं लगता
एक तुम एक बार मेरी आवाज़ बनके देखो
</poem>