641 bytes added,
15:29, 19 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विश्राम राठोड़
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कोई रहमतों के भरोसे अपना मकां छोड़ के आया है
लगता है आज फिर एक मकां बनाने के लिए अपना जहाँ छोड़ के आया
यूं तो घर गुजर जाने का सबको नसीब नहीं होता
जिसको नहीं होता वही तो बंजारा बन जाता है
</poem>