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साँझ / नामवर सिंह

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साँझ
समाधियाँ काली सफ़ेद
मिटे - मिटे लेख का बाँचना - घूमना ।
बेतरतीब उगे हुए
जंगली घास के फूल का सूँघना - टूँगना ।

और अचानक
देखना एक का दूसरे को
फिर मौन में डूबना ।

गन्ध लदे सुनसान पै दूर
किसी पिक का, बस, कूकना - कूकना ।
</poem>
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