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15:40, 23 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नामवर सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
साँझ
समाधियाँ काली सफ़ेद
मिटे - मिटे लेख का बाँचना - घूमना ।
बेतरतीब उगे हुए
जंगली घास के फूल का सूँघना - टूँगना ।
और अचानक
देखना एक का दूसरे को
फिर मौन में डूबना ।
गन्ध लदे सुनसान पै दूर
किसी पिक का, बस, कूकना - कूकना ।
</poem>