Changes

जम गई सी रात / नामवर सिंह

680 bytes added, 15:12, 24 सितम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नामवर सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नामवर सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जम गई सी रात, तम, थम - सी गई बरसात
बिजलियों के तार अँटकी सीकरों की पाँत

बात मन की घुमड़ती जैसे चबाई बात
छाँह चलती कभी आगे, कभी पीछे, साथ

हुई सहसा छाँह दो, दृग मुड़े पीछे, आह
रोशनी हँस उठी, फड़के पँख, खड़के पात ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,801
edits