{{KKRachna
|रचनाकार=नागार्जुन
|अनुवादक=
|संग्रह=भूल जाओ पुराने सपने / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सियासत में
न अड़ाओ
अपनी ये काँपती टाँगें
हाँ, महाराज !
राजनीतिक फतवेवाजी से
अलग ही रक्खो अपने को
माला तो है ही तुम्हारे पास
नाम-वाम जपने को
भूल जाओ पुराने सपने को
न रह जाए, तो —
राजघाट पहुँच जाओ
बापू की समाधि से जरा दूर
हरी दूब पर बैठ जाओ
अपना वो लाल गमछा बिछाकर
आहिस्ते से गुनगुनाना
‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
जे पीर पराई जाणे रे’’
देखना, 2 अक्टूबर के
दिनों में उधर मत झाँकना
-जी, हाँ, महाराज !
सियासत में <br>न अड़ाओ <br>अपनी ये काँपती टाँगें <br>हाँ, मह्राज,<br>राजनीतिक फतवेवाजी से <br>अलग ही रक्खो अपने को <br>माला तो है ही तुम्हारे पास <br>नाम-वाम जपने को<br>भूल जाओ पुराने सपने को<br>न रह जाए, तो-<br>राजघाट पहुँच जाओ<br>बापू की समाधि से जरा दूर <br>हरी दूब पर बैठ जाओ<br>अपना वो लाल गमछा बिछाकर <br>आहिस्ते से गुन-गुनाना :<br>‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए <br>जे पीर पराई जाणे रे’’<br>देखना, 2 अक्टूबर के <br>दिनों में उधर मत झाँकना<br>-जी, हाँ, महाराज !<br>2 अक्टूबर वाले सप्ताह में <br>राजघाट भूलकर भी न जाना<br>उन दिनों तो वहाँ <br>तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है <br>कुर्ता भी फट सकता है <br>हांहाँ, बाबा, अर्जुन नागा !</poem>