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|रचनाकार=श्वेता सिंह
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<poem>
सावन की हरी छटाओं में,
आओ हम इंद्रधनुष साधें,
भ्राता भगिनी के नाम आज,
एक धागा प्रेम भरा बाँधें।

हो थाल सजी रोली -अक्षत,
एक दीप प्रज्वलित आशा का,
कुछ स्मृतियाँ हों किलकारी की,
कुछ नोक-झोंक हो प्यारी सी।

भाई की सजी कलाई हो,
बहनों के हाथ मिठाई हो,
एक गीत पुराना सब गायें,
एक धागा भाव भरा बाँधें।

सावन के घने जलद दल को,
जैसे यह पूनम है बींधे,
मेरे भाई बन मृत्युंजय,
तू हर कठिनाई से जीते।

बहना की हर विनती भक्ति,
सींचे जब भाई का जीवन,
तब इस पवित्र अनुरोधन पर,
बाँधें एक अनुपम-सा बंधन ।

देश काल की दूरी नापे,
कच्चे धागे की लम्बाई,
सम्बंधों की कस्तूरी है,
जैसे बागों में अमराई।

नयनों में हर्षित सागर हो,
और आर्द्र रहे मन का आँगन,
जो हर्षित कर दे अंतर्मन,
बाँधें विश्वास भरा बंधन ।

इन कच्चे धागों की महिमा का,
वर्णन पांचाली का पट है,
वात्सल्य भरे इन धागों का,
प्रतीक सुभद्रा का कुल है

है पावन पर्व बधाई हो,
आये घर ख़ुशियों की थाती,
हर भाई का हो यश अनंत,
हर बहना हो सौभाग्यवती ।

हर भाई का हो यश अनंत,
हर बहना हो सौभाग्यवती ।
</poem>
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